Category Archives: बेटियां। पुत्रमोह।

गुनाह

फोन की घंटी घनघना रही थी और मैं दोपहर की नींद  से एकदम उठ कर बैठ गई और फोन देखा तो मेरी एक जूनियर असिस्टेंट प्रोफेसर कृति का फोन आया था। कोविड19 के चलते लॉकडाउन की प्रक्रिया पूरे देश में लागू हुए एक महीना हो चुका था। मैंने  कहा
” हां कृति, कैसी हो?”
“बस मैम ठीक ही हूं”
“नहीं, तुम्हारी आवाज़ में कुछ परेशानी झलक रही है”
” क्या बताऊं मैम, घर में बहुत विवाद बढ़ गया है”
“अरे क्या हुआ? कुछ बताओगी? एक सप्ताह पहले तो तुम कह रही थी सब ठीक है?”
” वो, मैम मैं सोच रही थी सब हैंडिल हो जाएगा, लेकिन बात बढ़ गई है” कृति की आवाज रुआंसी हो गई थी।
कृति से बातचीत करने पर पता चला कि उसके घर में पिछले एक महीने से आपसी तनाव बहुत बढ़ गया है।

कृति, हरियाणा आंचल के एक गांव से संबंध रखती है और उसके पापा श्रीमान बलदेव की अपनी फैक्ट्री है। तीन मकान हैं अलग अलग-अलग शहरों में और एक गांव का कोठीनुमा घर है। कृति पिछले साल ही हमारे महाविद्यालय में अंग्रेजी के असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर अस्थाई रुप से तैनात थी और उसके व्यक्तित्व ने मेरा मन मोह लिया था। स्पष्टवादी व मृदुभाषी इस लड़की ने महाविद्यालय की छात्राओं के बीच थोड़े ही समय में अच्छी खासी पहचान बना ली थी। कृति घर में सबसे बड़ी है और दो छोटी बहनें हैं। कृति की एक बहन एम।बी। बी। एस। के अंतिम वर्ष में अध्ययनरत हैं और तीसरे नंबर पर साक्षी है जिसने अभी बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण की है। कृति की कुछ पारिवारिक समस्याओं से मैं अवगत तो थी लेकिन ये कभी कल्पना भी नहीं की थी कि विवाद इतना बढ़ जाएगा।

दरअसल, कृति के पापा अपने माता-पिता की इकलौती संतान रहे हैं। कृति के दादा जी को गुजरे काफी साल हो चुके हैं। कृति बताती है कि वह जब पांच साल की रही होगी, जब दादाजी की मृत्यु हुई। अब घर में दादी का बैखोफ राज़ था और उनके निशाने पर हमेशा कृति की मां होती थी , जिन्होंने एक के बाद एक लड़की को जन्म दिया। कृति बताती है कि एक बार तो दादी उसे उठा कर छत पर ले गयी थी और वहीं से नीचे गिराकर मारने का भूत सवार था। लेकिन उसकी मां ने बहुत मिन्नतें  की तब जाकर, वह मानी थी। इस घटनाक्रम के बाद कृति को उसके मामा तीन महीने की नन्ही बच्ची को अपने साथ ले गए थे और वहीं उसका पालन-पोषण और बारहवीं तक शिक्षा हुई। वह बताती है कि बारहवीं कक्षा के बाद वह अपने घर मां पापा के पास लौटी थी लेकिन दादी को वह फूटी आंख नहीं सुहाती थी क्योंकि कृति ने अपनी मां का पक्ष लेना शुरू कर दिया था। वह दादी को भी समझाती थी कि लड़कियां , लड़कों से किसी भी क्षैत्र में कम नहीं हैं। दादी को लेकिन एक भय रहता था। दरअसल किसी ज्योतिषी ने कहा था कि, ” तेरी बड़ी पोती तेरे पर भारी रहेगी” बस फिर क्या था, दादी आए दिन नयी नयी शिकायतें अपने बेटे से करती रहती थी, कभी कृति को लेकर कभी कृति की मां को लेकर।

बलदेव सिंह शांत प्रवृत्ति के व्यक्ति रहे हैं और उन्हें अपनी फैक्ट्री से ही फुर्सत नहीं मिलती थी। इसी तरह साल दर साल बीतते गए, लेकिन दादी ने कृति की मां को सताना नहीं छोड़ा। गुस्से में आकर  कभी कभी बलदेव अपनी पत्नी पर हाथ भी उठा देते थे लेकिन चूंकि वह लड़कियों तक ये बात नहीं जताती थी, यद्यपि कृति अपने नाना नानी के पास जाती थी तो उसे नानी से पता चलता रहता था। कृति की दूसरी बहन मनीषा छात्रावास में रहती थी और सबसे छोटी अपनी बड़ी बहन की छत्रछाया में। कृति के आने के बाद उसका हौंसला बढ़ गया था। कृति की मां अपने साथ हुई ज्यादतियों की बात कभी बेटियों तक नहीं पहुंचने देती थी  लेकिन बेटियों को आभास हो ही जाता था कि मां को दादी इसलिए परेशान करती है कि उन्होंने पुत्र को जन्म नहीं दिया था। घर में होते झगड़ों से बेटियों को भी दुःख होता था और वे सोचती थी कि पोता ना होने पर दादी ,मां को इस कदर परेशान व कटु बाणों से कब तक घायल करती रहेंगी। बेटे के ना होने में विज्ञान के अनुसार स्त्री की तो कोई भूमिका ही नहीं है। ये तो पुरुष के कोरोम्जोम पर निर्भर करता है। लेकिन दादी इन बातों से कोई वास्ता नहीं रखती थी और पुत्र ना जनने का सारा ठीकरा अपनी बहु पर फोड़ती रहती थी। बलदेव सिंह भी मां को कुछ नहीं कहते थे क्योंकि एक बार कृति को उन्होंने कहा था,
“तेरे दादाजी की चिता के समक्ष मैंने प्रण किया था कि दादी का साथ मरते दम तक निभाऊंगा”
” पापा, फिर आपने मां से शादी की थी तब भी तो वचन भरे होंगें ना, उन वचनों का क्या? और आप क्या, हम सब भी तो दादी का ध्यान रखते हैं और वो हमारे जन्म को ही कोसती रहती हैं?”
“मैं कुछ नहीं जानता, में तेरी दादी का साथ दूंगा, मैं उन्हें कुछ नहीं कह सकता”

“ठीक है, फिर हम तो मां का समर्थन करेंगी। मुझे ये बताइए कि, हमने क्या गुनाह किया है बेटी के रुप में जन्म लेकर, मां ने क्या गुनाह किया है कि वो पुत्र को जन्म नहीं दे सकीं, आप तो विज्ञान समझते हैं और क्या दादी खुद एक औरत नहीं हैं? क्या उनका पलड़ा इसीलिए भारी हैं कि वो एक बेटे की मां हैं?”
“मैं कुछ नहीं जानता, मुझे उनका साथ तो देना है। तुम सबका हिस्सा मैंने फैक्ट्री में डाल रखा है। शादी होने तक उसका लेखा जोखा मेरे पास रहेगा। तुम्हें किसी प्रकार की कमी नहीं है”
आज कृति ने जो बताया तो मुझे बहुत दुःख भी हुआ और बहुत सारे प्रश्न में उठ खड़े हुए। कृति ने बताया कि उसके पापा, दादी को लेकर गुरुग्राम वाले फ्लैट में चले गए हैं और  दो सप्ताह हो गया वहीं पर ही हैं। घर के सारे जरुरी कागज़ात भी ले गए हैं और दादी ने मां को जाते समय धमकी भी दी थी कि ” देखूंगी क्यूकर ब्याह करय गी, इन छौरीयां का…”।
“अरे, बात यहां तक आ गई है? मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई थी और कृति का उदास स्वर बहुत कुछ कह रहा था।
” हां, मैम। मैं बहुत परेशान थी, तो मैंने सोचा आपसे बात कर लेती हूं। मन बहुत परेशान हो रहा था। दस दिन से तो मैं लगातार रो ही रही थी। मम्मी ने समझाया है कि ‘मैं तुम सबके साथ हूं। तुम लोग क्यों इतनी परेशान होती हो मुझे तो पता था कि ये विस्फोट कभी भी हो सकता है।”
” हां, हां कृति। तुम कभी भी मेरे से बात कर सकती हो। और सुनो, ये कोविड में वैसे ही लोग चिड़चिड़े हो रखें हैं। कोई बात नहीं, हो सकता है इसी में कुछ भलाई छिपी हो। हो सकता है विवाद ज्यादा बढ़ने पर कोई दुर्घटना जन्म ले। इसलिए ,तुम चिंता मत करो। सब ठीक हो जाएगा”
” हां, मैम। हमारे गांव में कम से कम बीस आत्महत्या के मामले हो चुके हैं”।
“तभी, मैं कह रही हूं, चिंता मत करो। दूर दूर रहो। “
” मैम, ऐसा है ना, पहले तो हम सभी लड़कियां अपने अपने काम पर चली जाती थी। अभी लॉकडाउन में सब एक महीने से हर वक्त साथ रह रहे हैं और दादी को तो हम सभी वैसे ही खटकती हैं, इसलिए हर रोज़ घर में कलह हो रही थी। पापा भी फैक्ट्री नहीं जा रहे थे, छोटी छोटी बातें भी बढ़ जाती थीं”
” हां, इसलिए ही कह रही हूं, जाने दो। जान बची रहे, वहीं बहुत है। सब ठीक हो जाएगा। नहीं तो जो सामने आएगा उसका मुकाबला तो करना ही पड़ेगा। परिस्थितियों से पहले ही हार मान ली तो हम लड़ भी नहीं पाएंगे। “
“जी, मैम”
” मम्मी कैसी हैं? उनका ख्याल रखना”
“मम्मी तो संभली हुई हैं। मामा लोग भी आए थे और कह रहे थे कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है। जो होगा, देख लेगें। उन्होंने पापा को काफी समझाया था लेकिन पता नहीं क्या भूत सवार है, पापा किसी की बात भी नहीं सुन रहे। बस एक ही बात कहते हैं कि ” मैं मां का साथ नहीं छोड़ सकता। “
” अरे ,भाई उन्हें साथ छोड़ने के लिए कह कौन रहा है। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं ना कि शादी लायक बेटियों को एक औरत के हवाले यूं छोड़ जाएं और वो भी तुम्हारी मम्मी ने तो कभी जॉब भी नहीं किया। “
” यही तो मैम। एक साल से तो मेरे लिए रिश्ता ढूंढ रहे थे। इस उम्र में अब तलाक लेने की बात कर रहे हैं, इसलिए मेरी परेशानी बढ़ गई है। मेरी दोनों छोटी बहनें तो मेरी तरफ ही देखती हैं। पापा ने तो ये भी निर्णय ले लिया है किस को कौनसा फ्लैट देना है। मैंने तो मना कर दिया कि मुझे कुछ नहीं चाहिए।”
“नहीं, यहीं तुम गलती कर रही हो। यदि नौबत यहां तक आ गई है तो अपना हिस्सा लो।  ये जिंदगी का सफ़र बड़ा कठिन है। गांठ में कुछ होगा तो सुरक्षित रहोगी”
” मैम, मैं तो सोच रही थी अपने लायक कमा ही लूंगी। बल्कि सबसे छोटी बहन को अभी आगे पढ़ाना है। “
” हां, तो अभी तुम्हारी नौकरी नियमित  नहीं है, इसलिए अपने अकाउंट से कुछ पैसा निकाल लो, जहां फैक्ट्री का हिस्सा डलता है।”
” हमने निकाले थे एक लाख रुपए। उसका मैसेज पापा के फोन पर जाता है। उन्होंने तुरंत अकाउंट को फीरज़ करवा दिया है और मम्मी को धमका रहे थे कि इतने पैसों की तुम्हें कहां ज़रुरत पड़ गई।”
” दो तीन महीने का तो इंतजाम हो गया ना। आगे भी कुछ रास्ता निकलेगा।  एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा जरुर खुलता है। चिंता मत करो”
“जी, मैम। यूं तो मामा जी व नाना जी भी कह रहे थे, ‘ हमारे रहते तुम लड़कियों को कोई चिंता करने की आवश्यकता नहीं है”
“ठीक है ,बेटा कृति। सब समय का फेर है। ये वक्त भी गुजर जाएगा”
” शुक्रिया मैम, ध्यान रखूंगी। आप तो बिल्कुल मम्मी की तरहं समझाते हो।”
कृति से बातचीत करने के बाद मन विचलित रहा । मैं सोचती रही, गुनाह किसका है? क्या बेटी जन्म लेना गुनाह है या हमारी मान्यताओं को गुनाहगार ठहराएं  या उस समाज को जो बेटी को बोझ समझता है लेकिन बहू सभी को चाहिए। हम इक्कसवी सदी में ” बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” के नारे लगाते हैं लेकिन क्या अपनी सोच में आमूलचूल परिवर्तन कर रहे हैं?   ऐसी घटनाएं सोचने पर बाध्य करती हैं।
©®✍️ डा सन्तोष चाहार “ज़ोया” ०८/०९/२०२०

विदाई

बहुधा कहा जाता है
विवाह में
लड़कियों की होती है विदाई
और विदाई पर फूट फूट कर रोते हैं
लड़की के परिजन,
ऐसा दृश्य उत्पन्न किया जाता है
जैसे कोई दुखों का पहाड़ खड़ा हो गया हो,
लेकिन बदलते परिवेश में
शादी के बाद लड़के भी हो जाते हैं विदा
मां बाप जिन्हें, बुढ़ापे की लाठी समझने की
बहुत बड़ी भूल करते हैं,
विशेषकर वे लड़के जो
मनपसंद साथी का  करते हैं चयन ,
अरेंज्ड मैरिज की तरह
बड़ी चतुराई से माता-पिता
की जमा पूंजी से ड्रीम मैरिज का
दुल्हा दुल्हन
बुनते हैं जाल ,
दुल्हन, दो चार दिन की मेहमान बन
कर ले जाती है विदा दुल्हे को अपने संग
हां, नौकरी पर जाना है, तो परिवार से दूर जाएंगे ही
इससे किसको है इंकार,
लेकिन  परिवार के सदस्य सोचने पर विवश
तब होते हैं,
जब शादी होते ही
बेटे व बहु के व्यवहार में देखा जाता है बदलाव,
दुल्हन पक्ष द्वारा
शादी के समय बनाया गया ऊपरी लिफाफा
शनै:शनै: लगता है उतरने,
हां, लड़का भी होता है विदा
बदल जाते हैं तेवर
और
भूल जाता है माता पिता व अविवाहित बहन के प्रति कर्त्तव्य,
बिना दहेज की दुल्हन के लिए,
अब उसे लेना है गाड़ी व बंगला
इसलिए घर की जिम्मेदारी के प्रति
भूल जाता है कर्त्तव्य पथ,
विवाह की सालगिरह भी
लड़की के घर ही जाती है मनाई,
स्वयं के परिवार को शामिल करने की
नहीं समझी जाती आवश्यकता ,
तो निश्चित ही कहा जाता है
लड़का भी होता है विदा ,
बहन के साथ भी हर पल होती है तुलना ,
ठुकरा दिया जाता है उसका
कुछ समय के लिए
आर्थिक मदद का प्रस्ताव,
बहन चाहती थी व्यवसाय में थोड़ी मदद,
रखा था
बैंक दर पर ब्याज समेत
लौटाने का प्रस्ताव,
चूंकि मां की सैलरी के निष्पादन में हो रही थी देरी
पिता तो सालों पहले ही ले चुके रिटायरमेंट,
लेकिन भाई द्वारा स्पष्ट मना कर दिया जाता है,
उसी बहन को
जो अपनी नौकरी के दौरान
भेजती थी हर महीने भाई को
मां से छुपा कर जेबखर्च,
लेकिन अब उसी
भाई की प्राथमिकता हो गई है
नयी -नयी पत्नी की फरमाइशें,
वही पत्नी जो
मायके से एक सूटकेस में
होकर आई थी विदा,
शादी होते ही उसे चाहिए
सारे ठाठ बाठ,
जबकि अपनी कमाई  का बड़ा हिस्सा वह
करवाती है मायके में जमा,
सच , कुछ लड़कियां तो वाकई में
बहुत शातिर हो गई हैं
साथ में बेटी पक्ष भी,
कोई तीज त्यौहार नहीं भेजा जाता
वधूपक्ष द्वारा,
बल्कि बेटे की मां भेजती है
बेटा बहू के पास सामान,
बेटों से भी उम्मीद ना ही करें तो ही सही है
ये  लड़के जो रीति-रिवाजों को नहीं मानते
खड़े हो जाते हैं  वधूपक्ष के समर्थन में,
निस्संदेह ही
परिवार सिमट कर  रह गया है अब
केवल दो व्यक्तियों तक ,
रिश्ते नाते सब खतरे में,
सलाह तो यही है
कर दो मन मसोस कर ,
शादी के बाद
लड़कों  को भी विदा,
जवानी के नशे में चूर
ऐसे लड़के भूल जाते हैं
बहन का भी , मां बाप की संपत्ति में
है आधा हक
जिसे बेटी छोड़ देती
लेकिन बेटे स्वयं के व्यवहार से
वंचित हो सकते हैं पूर्ण अधिकार से।

©®✍️ डा सन्तोष चाहार “ज़ोया” २८/०८/२०२०

हिचकी

संघर्षों
की सड़क से
गुजरने के बाद
बूढ़ी अम्मा
आज
नितांत अकेली है,
हां अकेली
भरेपूरे परिवार में,
हैं खोए
सब अपनी धुन में।
घर में
हैं सब सुख-सुविधा
लेकिन मन टटोलने
की फुर्सत किसे?
बेटा -बहू , पोता -पोतबहू व्यस्त
स्वयं की गृहस्थी में।
जीवनसाथी
वर्षों पहले
जा चुके अनंत यात्रा पर
बूढ़ी
अम्मा को हर पल, कमी
उनकी खलती।
अम्मा
रखती तो है
स्वयं को,
रोजमर्रा की दिनचर्या में व्यस्त,
सुबह,
पूजा का दीप जलाकर
तुलसी है सींचती
कांपते हाथों से
रसोई बना कर
पहली रोटी गाय को खिलाती,
फिर,
पक्षियों के लिए दाना डाल
करती हर रोज गीता-पाठ
बाबा ने सिखाये
जो हिज्जे,
बने अकेलेपन में,
अम्मा की अनमोल पूंजी।
अम्मा,
नियम से
संध्या का दीप जला,
बाबा से
बातचीत करने
पहुंचती है पुराने घर,
जो उन्होंने बनाया था।
वहां बैठकर
सुनाती है उन्हें,
सब बेटियों के सुख-दुख के किस्से
अम्मा,
कभी हंसती
तो कभी आंसू पोंछती पल्लू से,
कहती है,
“अच्छा किया तुमने.. बेटियों को पढ़ाकर
मेरा दिल खुश है… वे किसी पर निर्भर नहीं…
तुमने, शिक्षा की जो अलख जगाई.. बेटियों ने भी अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा दिलवाई… वे मायके से कुछ नहीं लेती”
घर के पास खेलते
बच्चों को होता कोतहूल
पूछते एक दूसरे से
अम्मा क्यों आंसू बहाती
वो तो हमेशा बिखेरती मुस्कान।
एक दिन,
उसी घर की दहलीज पर
राहगीरों ने देखा
महिला-सतसंग की टोली
अम्मा को घेरकर है बैठी
पूछने पर पता चला,
देखा था
अम्मा को, बाबा से इशारों में
बातचीत करते,
आयी थी एक हिचकी,
उसके बाद से ही
अम्मा
एकतरफ लुढ़क गई
और
उनकी दिव्य-आत्मा
अंनत यात्रा की ओर बढ़ गई
अब
बेटियां मायके कम जाती हैं
मां नहीं तो मायका कैसा?
✍️©® डा सन्तोष चाहार “ज़ोया” २६/०९/२०१९