सीप का मोती बनू
आंसमा का तारा
मन उपवन खिल जाए
जब सारा जहां हो हमारा।
सागर की मछली बन
घूमूं देश- विदेश
बन कर पंछी
लाऊं गगन से संदेश।
मां की प्यारी बिटिया बनू
पिता की दुलारी
करूं मै हरदम
उमंगों की सवारी।
चाह
एक अच्छी लेखिका बनू
पिरोऊं संवदेनाओं की लडी
झकझोर कर तन और मन
कभी ना रहूं मै अकेली खडी।
चाह
समाज को साथ लिए
चलो सफर मे मिलकर जिएं
आएगें क्षण अनेक नये
जला पाएं जब उजालों के दिए।
चाह
बन कल्पना
उड़ान भरूँ गगन में
बाधाओं से जा टकराऊं
कभी ना मैं घबराऊँ।
चाह
शिक्षा की अलख जगाऊं
दुख हर किसी के हर पाऊं
अंधियारे को दूर भगाऊँ
ग्रामीण विकास में योगदान कर पाऊं।
महिला सशक्तीकरण मेरा ध्येय
बन जाएं वे शिक्षित और अजेय।
@जोया-सन्तोष मलिक चाहार- 10/09/2015