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अटूट मौन

शब्द बयां नहीं कर सकते उस प्रेम को जो सुरभि और शंशाक एक दूसरे के लिए महसूस करते आ रहे थे जब से दोनों ने बचपन की दहलीज़ पार कर युवावस्था में कदम रखा था। पिछले बारह वर्षों से दोनो एक दूसरे की कदम दर कदम शिक्षा औरखेलजगतकी उपलब्धियों के साक्षी रहे थे। व्यवहार कुशल होने के साथ साथ शिक्षकों के प्रिय विद्धार्थीओं की श्रेणी में दोनों ने नाम दर्ज करवा रखा था।

भाषण प्रतियोगिता हो या नाटक मंचन, हमनें हमेशा दोनों को साथ साथ हिस्सा लेते देखा था। संस्कृत के नाटक शुंकतला में जिस ढंग से दोनों ने दुष्यंत और शुंकतला के चरित्र को चरितार्थ किया उसका पूरे आडिटोरियम में बैठी सभा ने करतल ध्वनिसे स्वागत किया। दोनों ने अपने प्रेम के अटूट मौन को मंच पर अभिनीत करके सबका आशिर्वाद जैसे प्राप्त कर लिया था। कभी भी हमने सुरभि और शंशाक के रोम रोम में बसते प्रेम को शब्दों की बैसाखी पर चलते नहीं देखा। एक दूसरे के पास से गुज़रते हुए उनका अंग अंग प्रेम के संप्नदन को इन्द्रधनुषी जामा पहना जाता था। कभी भी हमने उन्हें किसी भी तरहं की हलकी मस्ती में नहीं पाया। उन दोनों के प्रेम का पूरा बोर्डिंग परिसर साक्षी था। लेकिन क्या मज़ाल कोई किसी तरह की उंगली उठा सके। प्रेम के सागर में डूबकी लगाते हुए भी एक निश्चित दूरी बनाकर रखना व प्रेम के अहसास को नया आयाम देना दोनों के चरित्र की सुदृढ़ता को इंगित करता था।

सुरभि और शंशाक मेरे परम मित्र रह थे बोर्डिंग स्कूल में जहां हमने पहली कक्षा से अपनी जीवन यात्रा शिक्षा जगत के पायदान पर एक साथ शुरू की थी। निश्चित रूप से हम सबकी आपस में एक ऐसी समझ विकसित हुई थी जिसकी खूशबू आज साठ बरस की उम्र में भी भावनाओं से अभिभूत कर जाती है। ये कथनाक 1980 के दशक का है जब प्रेम आज़ की तरह बात बात पर दम नहीं तोड़ता था। उस प्रेम में समुंद्र सी गहराई और आसमान सी ऊंचाई थी जो परंम्पराओ में बंधे होने के बावजूद इश्क की नयी कहानी गढ़ गया था। जिसमें अलगाव भी हुआ, रास्ते भी बदले, अलग अलग गृहस्थी भी बसी लेकिन प्यार ने दम नहीं तोड़ा।

सुरभि और शंशाक अपने परिवार की सीमाओं में बंधे हुए, माता पिता की समझ के हवन में अपने प्रेम की आहुति डालकर कर्तव्य के सज़ग परहरी बने और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी राहों पर पीड़ा मिश्रित आंनद की अनूभूति के साथ गृहस्थीकी डगर चल पड़े। सालों तक अपने जीवन में व्यस्त हम सब साथी डिजिटल मीडिया से दुबारा संम्पर्क में आए और साथ लौट कर आए युवा अवस्था के प्रेम- किस्से। सुरभि और शंशाक आज़ भी पार्टियों में बड़ी संजदगी से एक दूसरे से अटूट मौन में रहकर उस सुरमई अहसास में खो जाते हैं जो बरसों पहले वातावरण में एक सुंगंध फैलाता था। आज़ भी कभी उन्होंने अपनेप्यार को शब्दों में नहीं पिरोया। बस दोनों के साथ होने की सुखद अनूभूति मात्र ही हमारी पार्टियों में नयी खुशबू बिखेर जाती है। हम सबके बीच सुरभि और शंशाक इश्क का वो दरिया हैं जिसमें हम बचपन के साथी प्रेम के मोती चुनने का अधूरा प्रयासकरते हैं।

✍️© “जोया” 09/10/2018

भंवर

दीपा – हां यही तो नाम था उसका।

दीपा मेरे पड़ोस में रहने वाली बहुत ही सुशील और नेकदिल लड़की। नाम के अनुरूप हमेशा जीवन रोशनी से भरपूर। कालेज हम साथ ही जाते थे। वह अपने माता पिता की इकलौती सन्तान बड़ी नाज़ से पली पढ़ी थी। संगीत, चित्रकारी और साहित्यिक कृतियों में उसका गुण निखर कर झलकता था। शिक्षा दिक्षा पूरी होने के बाद हमारे रास्ते अलग हो गए। उसकी शादी सेना में मेज़र से तय हो गई थी और मैं भी शादी के बाद अपनी घर गृहस्थी मे व्यस्त हो गई। पत्राचार हमारे बीच काफी साल जारी रहा फिर धीरे धीरे वह भी कम हो गया।
समय पंख लगा कर उड़ रहा था। बच्चे बड़े होकर शादी शुदा जिंदगी में जम गए थे। पति भी रिटायर हो गए थे। मैं स्वयं भी बैंक अधिकारी के पद से रिटायर हो गई थी। अब मेरे पास काफी समय था और मैं एक स्ंस्था हुनरमंद से जुड़ गई जहां कम पढ़ीलिखी महिलाओं को उनके हुनर के हिसाब से आत्मनिर्भर बनाने में सहायता की जाती थी। बैंक में कार्य करने का मेरा अनुभव काफी काम आया और लोन वगैरा दिलवाने में मैं इन सब औरतों की मदद करती थी। धीरे धीरे मेरी जान पहचान औरतों के हक में आवाज़ बुलंद करने वाली संस्थाओं बढ़ गई थी।

एक दिन हुनरमंद संस्था का वार्षिक उत्सव मनाया जा रहा था तब कार्यक्रम के बीच में मुख्य अतिथि के पास एक महिला आकर बैठ गई। क्योंकि कार्यक्रम संयोजक का जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई थी तो मैं स्टेज़ के पास ही खड़ी थी। मेरी नज़र बार बार इस महिला पर केंद्रित हो रही थी। कुछ जानी पहचानी सूरत। चाय पान के समय हम दोनों एक दूसरे को पहचान की कोशिश कर रही थीं। अचानक दोनो ने एकसाथ बोला”संजना‘ ‘दीपाऔर हम यादों में खो गए। दीपा जीवन के दौर में महिला सशक्तीकरण संस्था से जुड़ी थी।

घर आने का न्यौता देकर दीपा चली गई। एक सप्ताह बाद ही उसका फोन आया और हम दोनों सहेलियां जीवन के मुख्य पलों को सांझा कर रही थी। दीपा ने बताया कि वह पति से अलग रह रही है। मेरे पूछने पर उसने बताया कि शादी को दो ही साल हुए थे जब उसके पति का प्रमोशन होना था। उनके घर पर बड़े अफ़सर सौरभ के साथ डिनर चल रहा था और बढिय़ा वाइन तो फौजी घरों में आम बात थी। हंसी मज़ाक का दौर चल रहा था। दीपा भी वाइन लेती थी क्योंकि ये बहुत आम बात थी उस परिवेश में। उस दिन सभी ने कुछ ज्यादा ही ले ली थी और रात के एक बज़ गए थे। दीपा के पति अजय ने सौरभ को वहीं रूकने के लिए कहा। दीपा ने बताया कि वाइन का आखिरी पैग पीने के बाद उसे कुछ नशा ज्यादा हो गया था और सिर में थोड़े चक्कर महसूस कर रही थी, इसलिए वह अपने कमर मे जाकर सो गई।

दूसरे दिन सुबह नींद खुली तो अपने बिस्तर पर सौरभ को पाकर परेशान हो गई। और वह जोऱ से चीखने लगी। सौरभ की नींद भी खुल चुकी थी और वह मंद मंद मुसकरा रहा था।पति अजय सुबह की सैर के लिए निकल चुका था। सौरभ ने कहा ” आज़ रात को मुझे तृप्त करने के लिए शुक्रीया। तुम वाकई बहुत हसींन हो”। दीपा अपने को ठगा सा महसूस कर रही थी और रात की कुछ धुंधली यादें दिमाग़ में अक्स ले रही थी…और वह ग्लानि से भर चुकी थी। सौरभ जा चुका था और पति अजय घर में दाखिल हुए थे। दोनों के बीच खूब झगड़ा हुआ और अजय ने कहा ” क्या हुआ यदि मेरे प्रमोशन के लिए सौरभ को एक रात खुश कर दिया ?”

दीपा ने बताया कि उसी दिन वह अजय को छोड़कर चली आयी थी। जख्म गहरे थे। तलाक की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसने अपने आप को इस संस्था के कार्य में झौंक दिया था। पैसे की दिक्कत नहीं थी। मां बाप ने उसे पूरा सहारा दिया था। अच्छे मनोचिकित्सक से उसका इलाज़ करवाया था। लेकिन दीपा ने बताया कि उसके साथ जो विश्वासघात हुआ उसके निशान इतने साल बाद भी अंकित हैं यद्यपि वह सब भूलना चाहती है पर कभी न कभी उसके मन मस्तिष्क पर सब कुछ छा जाता है और वह चीख चीख कर कहती हैमी टू

दीपा जैसी कहानी हमारे आसपास, हर गांव, कसबे, शहर व हर वर्ग में घटती रहती हैं लेकिन उन औरतों में अभी हौंसला नहीं है अपनी कहानी शेयर करने का, क्योंकिमी टू के भंवर में उलझकर गृहस्थी की नींव को हिलाना नहीं चाहती और दूसरा कारण ये भी हो सकता है कि अभी आत्मनिर्भर भी नहीं हैं जो इस भंवर में उलझें। तीसरा कारण ये भी है कि न्यायालय में फाइलों के अंबार पहले ही हैं और उन्हें नहीं लगता कि उनके जीते जी न्याय मिल जाए। फिर कोइ साक्ष्य थोड़े ही उन्होंने रखें होगें जो अब आवाज़ उठाएं। लेकिन जो लोग ये सोचते हैं कि उसी वक्त आवाज़ उठानी चाहिए थी तो मेरा मानना ये है की “ जो इन हादसों से गुज़रता है वही समझ सकता है कि अपराध बोध, ग्लानि, आत्मविश्वास की टूटन के भंवर से निकलने मे वर्षों लग सकते हैं।

एक फेसबुक पोस्ट मैं पढ़ रही थी। किसी ने लिखा था-
” काम निकलवाना हो तो ‘ Sweetu’ और काम निकल जाए तो ‘Me Too'”
मेरा सवाल ये है कि ” काम करने के लिए क्या पुरूष एक औरत की अस्मिता से खेलेंगे?”
विचारणीय प्रश्न है। सोचिए जरा।

✍️©️”जोया”14/10/2018.

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मन के दीए

इस बार दिवाली कुछ नये ढंग से मनाए
कुम्हार के परिवार द्वारा बनाए दीए जलाएं।

खूब सजाएं अपने घरों को, लेकिन
देशी शिल्पकारों की कृति ही घर लाएं।

खादी को घर घर अपनाएं
अपने बुनकरों का मान बढ़ाएं।

मिठाईयों को त्याग कर
घर की बनी हलवा पूरी खाएं।

जब भी हम लक्ष्मी जी को भोग लगाएं
अन्न व दीप दान अनाथ आश्रम में भी कर आएं।

इस बार दिवाली कुछ नये ढंग से मनाए
कुम्हार के परिवार द्वारा बनाए दीए जलाएं।

दीपवाली की बधाई में हृदय की मिठास मिलाएं
आओ इस बार दिवाली पर बुजुर्गों से आशिष ले आएं।

मंदिरों में जब दीए जलाएं
मन के अंधकार को वहीं छोड़ आएं।

अबकी बार जब हम दिवाली मनाएं
एक दीया पूर्वजों के नाम का भी जलाएं।

इस बार दिवाली कुछ नये ढंग से मनाएं
कुम्हार के परिवार द्वारा बनाए दीए जलाएं।

कन्या भ्रूण हत्या, नारी अपमान सरीखी कुरीतियों को भगाएं
सब मिलकर बेटियों को पढ़ाएं व बेटों को भी संस्कारी बनाए।

इस बार दिवाली नये ढंग से मनाएं
गरीब की झोंपडी में भी दीए जलाएं।

आडंबरों से रहित जीवनशैली अपनाएं
इस दिवाली पर सब मन के दिए जलाएं।

इस बार दिवाली कुछ नये ढंग से मनाएं
कुम्हार के परिवार द्वारा बनाए दीए जलाएं।

✍️©®”जोया” 14/10/2018

रीत गए

बीती सदी सा तुम रीत गए
भुलाई तुमने प्रीत
बन गए किसी के मीत
मेरे लिए अब तुम बीत गए।

दिल अपना प्रीत पराई
देखो कैसी बदली छाई
आंखे मेरी भर आयी
छलिया तूने कैसी प्रीत निभाई?

प्रीत कैसे बनी यूं हरजाई
आहों की कैसी बेला आयी
तुम्हें याद मेरी ना आई
विरह अग्नि भी शरमाई।

हमजोली मेरे तुम रीत गए
बन गए किसी के मीत
भूले साथ गुनगुनाए गीत
मेरे लिए अब तुम बीत गए।

माथे पर अंकित वो चुम्बन
दिल की बढ़ी जब धड़कन
रोम रोम में हुआ संपन्दन
कण कण में हुई थी थिरकन।

बरसे बादल सा तुम रीत गए
निभाई ना तुमने प्रीत
बन गए किसी के मीत
मेरे लिए तुम अब बीत गए।

सूखे पोखर सा तुम रीत गए
स्वप्न सुनहरे पर कठोर पहरे
होते जख्म दिन रात गहरे
प्रीत का झंडा अब ना फहरे।

शापित कूएं सा तुम रीत गए
झूठलाई तुमने प्रीत
बन गए किसी के मीत
मेरे लिए अब तुम बीत गए।

पत्र में दबा वो गुलाब का फूल
फांक रहा अब गर्दिश की धूल
क्या प्रीत बनी मेरी भूल
चुभते हैं हृदय मे कांटे और शूल।

परंम्पराओ के बंधन तोड़
संकीर्णता के दायरे छोड़
कसमें मिलकर खाई
फिर क्यों हुई प्रीत पराई?

तपते मरूस्थल सा तुम रीत गए
टूटी बंधन की डोर
छा गया अंधेरा यौवन के भोर
मेरे लिए तुम अब बीत गए।

सूखे झरने सा तुम रीत गए
उड़ गया पंछी चकोर
चुग कर जीवन का पोर पोर
नहीं मचाया प्रीत ने शोर।

मिलन की बेला का सतरंगी धनुष
प्रेम रंगों से सज़ाया दिल फानूस
संग गाए गीत बने नासूर
दिल वीणा हुई काफूर।

बरसाती नदी सा तुम रीत गए
सुर सुंदरी के बने तुम मीत
आंसू बहाए मेरी प्रीत
मेरे लिए तुम अब बीत गए।

ये कैसी निभाई तुमनें प्रीत
बागों में कोयल जब कूकेगी
गाएगी तेरी बेवफाई का तराना
प्रेमी युगल ना लिखेंगे फिर कोई फ़साना।

✍️©®जोया”12/10/2018

रहबर

रहबर मेरे
ख्यालों में रहते नित नये सवेरे
पलकों की चिलमन तेरी

उठाए सपनों की डोली मेरी।

महकती हैं सांसे मेरी
चटकती बागवां की कली जब तेरी
तितलियां तुम्हारे हृदय की छेड़ती हैं तान
झंकृत कर जाती फिर मेरा सुरीला गान।

थिरकता है रोम का कण कण
कौंधती बिजलीयां जब नशेमन।

राही तुम मेरे कंटीले पथ के
सारथी मेरे जीवन रथ के
फूल मेरे हृदय उपवन के
शूल मेरे हर दुश्मन के।

मेरी जीवन रंगोली की बान तुम
मेरे चढ़ते सूरज़ की शान तुम
तुम से ही है रोशन मेरा नूरानी महल
जहां नित रहती खूब चहल पहल।

आसंमा के सितारों का
बनाया तुमने सुंदर बिछौना
उतार लाए चांद को नभ से
बनाया उसको फिर मेरा खिलौना।

तुम ही मेरे प्राण प्रिय
तुम ही मेरा सम्मान प्रिय
मैं प्यासी नदी मरूस्थल सी
तुम गहरा सागर मेरी जान प्रिय।

✍️©®”जोया” 11/10/2018

इश्क़ एक डगर

कमल की पंखुरी से खिले तुम्हारे होंठ
मृगनयनी अध खुली इश्क़ से सराबोर आंखे
मज़बूरी का सबब लिए तुम्हारा अक्स
याद़ है आज़ भी परम्पराओं सा कठोर शख्स ।

शालीनता से जुद़ा होते वे क्षण
समेटे इश्क का कण कण
लिए गहरे जख्मों की थाती
फिर लिख न पाए एक दूज़े को पाती।

रूह से रूह की होती मुलाकात हर रोज़
सागर सी गहराई लिए मधुर वाणी तेरी
झंकृत कर जाती हृदय वीणा मेरी
मन तरंगो से जुड़ना बन गई अब नयी खोज़।

डगर हमारी रही जुद़ा जुद़ा अगर
सामाजिक ताने बाने का था असर
हृदय में पल्लवीत फूलों को जो देता है मसल
आंक ना पाता समाज़ सच्चे इश्क की नस्ल।

इश्क का सुरमयी अहसास
भरता रोम रोम में उल्लास
निर्जन वन है उनका हृदय
जिसमें खिलते नहीं फूल ये खास़।

या फिर परंपरा की चादर ओढ़े
बन जाते वे जलते सूरज़ के घोड़े
होते हैं सचमुच बहुत निगोड़े
इश्के जनून पर चलाते जो जमकर हथौड़े।

इश्क की जमीं निराली
निराला इश्के आसमां
इश्क दिले बागवां की है खुशबू
मिट जाती हस्ती, पर मिटा ना सके कोई इश्क की हरियाली।

✍️©®”जोया” 10/10/2018

बधाई

प्यारी बिटिया तुम्हें मुबारक ये खुशी
जीवन तुम्हारा बीते हंसी हंसी
अपनी कर्मभूमि में रहना लीन
मेरी दुआएं,तुम कभी ना रहो दुखी या दीन।

अपनी क्षमता का लोहा तुम मनवाओ
ऊंचाई के शिखर पर चढ़ती जाओ
मुश्किलों से कभी ना घबराओ
ज्ञान की लहर पर तैरती जाओ।

हौंसलों की भरो उड़ान
हमेशा रहो सीना तान
सपनों को चढ़ाओ परवान
खूब बढ़ाओ अपना मान सम्मान।

जीवन मनुष्य का बहुत दुर्लभ
संचित करो कर्म सदभावना के नारी सुलभ
गहरे सागर सा रहे चित वल्लभ
चुन चुन लाओ मोती व शंख दुर्लभ।

चुनौतियां जीवन में आती अनेक
लेकिन कार्य करते जाना नेक
मिलेंगे अवसर तुम्हें अनेक
दुर्व्यवहार के आगे कभी ना देना घुटने टेक।

मेहनतकश व्यक्ति बन जाता कंचन
तपता, निखरता और संवरता जीवन
बाधाओं से कभी न घबराना
हिम्मत से उनसे टकरा जाना।

हर्षित, पुल्लकित रहे तुम्हारा जीवन
मां करती ईश से है वंदन
बगिया तुम्हारे हृदय की महकती रहे
बिटिया हमारी हमेशा चहकती रहे।

✍️©®”जोया”19-09-2018

अनुभूति

जीवन एक सुन्दर अनुभूति

अपनो के पास होने की

पल – पल प्यार का अहसास

जींवत करता हुआ हर श्वास।

माटी की भीनी खशबू

अंतर्मन को सहलाती

इठलाती बल खाती

दूर तक फैली जाती।

सौंदर्य से भरपूर

महकता बचपन सूदूर

यादों के साए

सब अपने,नही कोई पराए।

जीवन की मंगल बेला

पुकाऱता जीवन का गीत सुरीला

रंगों की दुनिया का मेला

आओ गढे़ जीवन चरित्र अलबेला।

@तोषी-सन्तोष मलिक चाहार–@

Life

Life is like a maze,

Sometimes one sits and gazes.

Life is like a boundless sea,

One dives deep to fathom its plea.

Life is like a coarse stone

Sometimes one weeps and moans.

Life is like a web,

Sometimes one is entangled in its sob

Life is to be fought and lived,

Though adversity gets one hooked.

Life is like a storm,

You have to face it with a horn.

Then one fine Day

Life becomes a soft carpet

One treads happily with glee.

Life becomes your song,

One lends ear to hear its sweet melody.

Life rises high as a wave,

One learns the art to surf .

Life becomes ones’ best resort

To weave the story of all experience.

✍️©® “Joya”

A Clarion Call

 Aim, aim, aim

Do not slow down the game

Replenish YOUR energy

into

Mesmerizing synergy.

Dig hard

Before it is dark

Work honestly

Leave your mark.

Let no stone unturned

Leave no earth unchurned.

Life has abundance to offer

Go

Fill your coffers

Add feathers to your crest

Never, never should You rest.

Take a Break

Enjoy your cake

But restrain

Forsaking the PLEDGE

You made.

My wishes

Always with You

Go and achieve

what is your Due

Paint your life

With myriad hue.

✍️©® ” जोया”